Friday, September 13, 2013

Girls more vulnerable in MP

Sample registration data as recently released by Registrar General of India, states that for every 1000 infants born 56 will loose their lives before their first birthday. As per the data Madhya Pradesh has infant mortality rate of 56 per 1000. Their has been drop of 3 points from last year, which shows some improvement, but still State has the highest infant mortality rates in India. One of the challenge the latest IMR data shows is that the girl children continue to be more vulnerable in the state as well as across the country. The IMR for girls the state stands at 59 per 1,000 live births compared to 54 for the boys. Rural girls are much more susceptible with 62 out of 1,000 girls dying before age of one year compared to 61 boys. The average IMR for in the country is 44 compared to 41 for the boys.

Hope my voices does not get lost

Sunday, September 1, 2013

भेदभाव पर सवाल करती बालिकाएं

अक्सर रोजमर्रा के जीवन में हमसे एक महत्वपूर्ण घटना छिपी रह जाती है। वह घटना है - बालिकाओं के साथ भेदभाव। बड़े यह सोच रहे हैं कि अब जमाना बदल गया है और लैंगिक भेदभाव कम हो गया है, पर बालिकाओं को रोजाना दो-चार ऐसी घटनाओं से रूबरू होना पड़ता है, जिससे वह समझ जाती है कि लड़कों की तुलना में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। अक्सर यह धारणा रहती है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव कम होता है, पर जब हम बालिकाओं के अनुभव एवं उनके सवालों से रूबरू होते हैं, तो पता चलता है कि शहर हो या गांव, बालिकाओं के साथ भेदभाव अभी भी कम नहीं हो पाया है। भोपाल की एक शाला में 10वीं में पढ़ने वाली तमन्ना को नृत्य का शौक है। पर वह इन दिनों एक सवाल से जूझ रही है। वह कहती है, ‘‘नृत्य करना मेरा सपना है, मैं नृत्य से प्यार करती हूं पर मेरे अभिभावक एवं भाई मेरे इस शौक को पसंद नहीं करते। वे कहते हैं कि 10वीं के बाद मैं नृत्य नहीं कर सकती। पर क्यों?’’ तमन्ना के इस सवाल का जवाब जब नहीं मिलता, तो उसे समझने में देर नहीं लगती कि लड़की होने की खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा। 8वीं में पढ़ने वाली एक अन्य लड़की वर्षा सवाल करती है, ‘‘लड़के एवं लड़की में भेदभाव क्यों किया जा रहा है?’’ वह कहती है, ‘‘जब मेरा भाई बाहर से घर आता है, तो मां मुझसे कहती है कि मैं उसे खाना एवं पानी दे दूं। पर जब यही स्थिति मेरे साथ होती है एवं मैं बाहर से घर आती हूं, तो मेरे भाई को क्यों नहीं कहा जाता कि वह मेरे लिए खाना एवं पानी लाकर दे?’’ वर्षा, तमन्ना एवं अन्य लड़कियों को घर, शाला एवं बाजार हर जगह किसी न किसी रूप में भेदभाव सहना पड़ रहा है। यह भले ही बड़े को दिखाई नहीं दे, पर जब वे अपनी बात रखती हैं एवं सवाल करती हैं तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि उनके साथ बाल उम्र में ही भेदभाव शुरू हो जा रहा है। एक अन्य बालिका सीमा इस भेदभाव को महसूस करती है। वह दो बहनें है। पर वह उस समय एक सवाल से जूझने लगती है, जब उसे पालक से सवाल किया जाता है कि उनके भाई क्यों नहीं है? यह उन लड़कियों की आवाज है, जो बाल अधिकारों की पैरवी करने वाली एक स्वैच्छिक संस्था द्वारा स्थापित शाला मंच की सदस्य हैं। खुशी, दीप्ति, अंजना, नवीन एवं कई ऐसे बच्चे हैं, जो शाला मंच से ज्यादा उत्साहित हैं। वे कविता लिखकर, कहानी लिखकर, आलेख लिखकर अपने अनुभव, आसपास की घटनाओं एवं बाल अधिकारों से दूसरों को रूबरू कराते हैं। बच्चों हमें उन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित कर पाते हैं, जिनकी ओर हम ध्यान नहीं दे पाते। बच्चों की अभिव्यक्ति को ज्यादा अवसर देने का यह बहुत ही बेहतर जरिया है। बच्चों के सर्वांगीण विकास को प्रभावित करने मुद्दे पर वे खुद अपने विचार प्रकट करते हैं एवं सवाल करते हैं। बाल मजदूरी, शारीरिक दंड, साफ-सफाई जैसे मुद्दे पर भी शाला मंच से जुड़े बच्चे अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। उनके सवालों का जवाब कुछ हो सकता है, तो वह है - लैंगिक भेदभाव खत्म करते हुए बाल अधिकारों का संरक्षण करना। बालिकाएं अपनी बात एवं अनुभवों को साझा करते हुए अपेक्षा कर रही हैं कि उनके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म कर बाल अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए। - अनिल गुलाटी